Rabindranath Tagore Jayanti 2022 in Hindi | कविगुरु रवींद्रनाथी के बारे में कुछ अज्ञात जानकारी

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ज्यादातर लोग रबीन्द्रनाथ टैगोर को इसलिए जानते है क्योंकि उन्होंने हमारा देश का नैशनल एंथम लिखा था। लेकिन क्या आप जानते थे वो दुनिया के पहले एशियन थे नोबेल प्राईस को जीतने वाले। इतनाही नही एक नोबेल प्राईस जीतने वाले ऑथर होनेके इलावा वो एक लाजवाब पोएट थे जिनकी एक बोहोत बारी कलेक्शन है पोएट्री को।

इसके इलाबा वो म्यूजिक को कम्पोज करते थे 2200 से ज्यादा उन्होंने गाने लिखे थे। इसके इलावा पेंटिंग करते थे 2300 से ज्यादा उनके आर्ट वर्क्स है।

इसके इलावा वो एक बारे ट्रैवलर थे, अपने जमाने मे 34 कांट्रिस ट्रैवल करी थी। जबकि उस जमाने मे ट्रैवल करना कितना मुश्किल था। इसके एलाबा इंडियन इंडिपेंडेंस मूवमेंट में इनका बोहोत बारा कंट्रीब्यूशन राहा था और एक सोशल रिफॉर्मर बी थे वो।

एक ऐसे जमाने मे जहापर लोग नेशनलिज्म भाबना का इस्तेमाल कर रहे थे अंग्रेजी के खिलाफ लड़ने के लिए। रबीन्द्रनाथ टैगोर एक स्टेप आगे चल रहे थे उनसे अलरेड इंटरनेशनलिज्म के आइडियोलॉजी में बिस्वास रखते थे।

टैगोर द स्कूल ड्रॉपआउट

रबीन्द्रनाथ टैगोर का फैमिली सरनेम था कुशारी। ये एक ब्राह्मण थे और इतनी अमीर परिवार से आते थे की इनकी फैमिली को ठाकुर कहलाया जाने लागा। लेकिन जो ब्रिटिश थे उनका नाम प्रोनाउंस नही कर पाते थे उन्होंने उसे मिस प्रोनोंस करके कहा टैगोर, यही से इनका नाम टैगोर आया। तो ओवर टाइम टैगोर नाम ज्यादा कॉमन होगया।

रबीन्द्रनाथ टैगोर के जो ग्रैंड फादर थे द्वारकानाथ टैगोर, ये एक बड़े प्रॉमिनेंट इंडस्ट्रियलिस्ट थे। इनके ढेरो बिज़नेस थे बैंकिंग, इंश्योरेंस, कॉल माइनिंग, सिल्क जैसी चीजों मे। ओर ये राजा राम मोहन राय के बोहोत अच्छे दोस्त थे। उनके ब्राह्मोर समाजका एक हिस्सा थे।

द्वारकानाथ टैगोर के बेटे थे देवेंद्रनाथ टैगोर जो की रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता है। देवेंद्रनाथ टैगोर का माइंड उतना बिजनेस ओरिएंटेड नही था बल्कि ये स्पिरिचुएलिटी में ज्यादा बिस्वास रखते थे। स्वामी विवेकानंद के स्पिरिचुअल जर्नी में इन्होंने एक बड़ी भूमिका निवाइ थी।

देवेंद्रनाथ टैगोर के 14 बच्चे हुऐ जिनमेसे अखरी थे रवींद्रनाथ टैगोर जिनका जन्म 1861 मे हया था। क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर अपने स्पिरिचुअल जर्नी में बसी थे और उनके माता की हेल्थ उतनी अच्छी नही रहती थी। इसलिए इन्हे बचपन मे रईस किया गाया था सर्वेंट्स के द्वारा। बादमे रवींद्रनाथ टैगोर अपने जीवन के इस पार्ट को डिस्क्राइब करते हुऐ काहा ये सर्वोक्रेसी थी, रूल ऑफ द सर्वेंट्स।

इनकी एजुकेशन की बात करें तो स्कूल मे एक्सप्रियंस अच्छा नही था क्योंकि ये ध्यान नहीं देते थे ज्यादा क्लास मे और टीचर्स से बारी मार परती थी इन्हे। इन्ही कारणों से ये स्कूल भी बदलते रहते थे जैसे कलकत्ता एकेडमी, ओरिएंटल सेमिनरी, एसटी जेवियर्स। फाइनली इन्होंने स्कूल मे जाना ही चोर दिया।

स्कूल से ड्रॉपआउट करने के बाद उनके भाई हेमेंद्रनाथ टैगोर ने इनको होम ट्यूटरिंग कारों। जहापार इन्हे सारे फॉर्मल सब्जेक्ट पराई जाति थी
जैसे की साइंस, मैथ ये सब बिसय। इसके इलावा फिजिकल ट्रेनिंग वी इन्हे करवाई जूडो में, गंगा में स्वीमिंग करना सिखाती आई रेसलिंग ओर ट्रेकिंग जैसे चीज़े भी इन्हे सिखाया गया। इनके इलावा लेजेंडरी म्यूजिशियन उनके घर तक आते थे उन्हें म्यूजिक सीखने के लिए, जैसे की जादूनाथ भट्टाचार्य। वही इंसान जो की बंदे मातरम यानी हमारा नैशनल ट्यून सेट किया था।

रवींद्रनाथ स्पिरिचुअल जर्नी

1873 में जब रवींद्रनाथ 12 साल के थे उनके पिता उन्हे एक सेल्फ डिस्कवरी जर्नी में ले गए। पहले सांतिनिकेतन के एक छोटे से एरिया में, उसके बाद अमृतसर में वो एक महीने तक रहे। जहां पर गोल्डन टेंपल पर बैठ कर वो घंटो घंटो तक गुरबाणी सुनते रहते थे।

उसके बाद हिमालयस मे डलहौसी हिल स्टेशन पर वो कुछ महीने के लिए रहे। वहा इनके पिता ने इन्हे एस्ट्रोनॉमी, हिस्ट्री ओर मॉडर्न साइंस पराई। साथ ही साथ स्प्रिचुअल टेस्ट अर्थात उपनिषद ओर वालिमिकिस रामायण भी।

इसके बाद आगे की एजुकेशन उन्होंने लंदन में कंप्लीट करी। 1864 मे रणिंद्रनाथ के बारे भाई स्तेन्द्रनाथ टैगोर पहले इंडियन बन गए जिन्होंने आई. ए. एस एग्जाम क्लियर किया। उसके बाद 1878 मे रबीन्द्रनाथ अपने भाई और उनके फैमिली के साथ इंग्लैंड चले गए पराई करानेके लिए।

इन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से लॉ की पराई करी क्योंकि इनके पिता चाहते थे ये बारे होकर लॉयर बने। लेकिन इनका खुद इस चीज मे इंटरेस्ट नहीं था इसलिए बाद मे ये कॉलेज से ड्रॉप आउट कर गए। कॉलेज से ड्रॉपआउट कराने के बावजूद भी अज्के दिन तक इस कॉलेज मे एक टैगोर लेक्चर सीरीज पराई जाति है कंपारेटिव लिटरेचर में हर साल। इस टाइम के दौरान रवींद्रनाथ ने इंग्लिश लिटरेचर की पराई करी, जैसे की विलियम शेक्सपियर के वर्क्स। इसके इलावा इंग्लिश, स्कॉटिश ओर आयरिश म्यूजिक से भी वो टच में आए। इन्ही सारे इनफ्लुएंस ने रवींद्रनाथ टैगोर की आर्ट वर्क्स को शेप दिया है।

रबिंद्रनाथ टैगोर ने काफी यंग एज से लिखना शुरू कर दिया था। ये सिर्फ 13 साल के थे जब इन्होंने अपनी पहली पोएम लिखी थी। 1874 की बात है जब इसे तत्त्वबोधिनी पत्रिका मे पब्लिश किया गाया था। उस जमाने मे ऐसी न्यूजपेपर्स ही होते थे जिनमे इंडियन राइटर्स की कहानीया पब्लिश की जाती थी। लेकिन थैंकफुली अजके दिन आपको कोई पत्रिका को ढूंढने की जरूरत नहीं है।

टैगोर द म्यूजिशियन

रविंद्रनाथ ने गानों को लिखना और कंपोज करना भी सुरु किया। इनके गानों के एक बोहोट बारे फैन थे नरेन। नरेन है हमारे यंग स्वामी विवेकानंद।
जब नरेन और रविंद्रनाथ काफी यंग थे तब रवींद्रनाथ यंग स्वामी विवेकानंद यानी नरेन को 2 – 3 गाने भी सिखाए थे। ओर स्वामी विवेकानंद ने औरों के साथ मिलकर इन गानों को गाया भी था ब्रह्मा समाज के एक मेंबर की सादी में। सोचकर देखिए कितना गहरा कनेक्शन था हमारे इन हिस्टोरिकल लीडर्स के बीच में।

रवींद्रनाथ टैगोर जिका म्यूजिक एक्चुअली में काई अलग अलग जेनरेस का सिंथेसाइज होता था। हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक, कार्नेटिक म्यूजिक, गुरबाणी, आयरिश म्यूजिक इंसाबके मिक्स से ये म्यूजिक बनाते थे। अजके दिन तक न सिफ बंगाली म्यूजिक पर इनका एक इंपैक्ट दिखता है बल्कि कई बॉलीवुड गाने वी इन्हिके ही म्यूजिक से इंस्पायर्ड है। जैसे की छूकर मेरे मान को ये गाना इन्ही के ही म्यूजिक से इंस्पायर्ड है।

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टैगोर द राइटर

कहानियों के बात करें तो रवींद्रनाथ ने काफी छोटे एज से ही कहानियां लिखना सुरु कर दी थी। इनकी मोस्ट फेमस वन ऑफ द स्टोरी है काबुलीवाला। नोवेल्स इन्होंने काफी लेटर एज पे लिखना सुरु करी थी। पहली नोवेल इन्होंने पब्लिश करी थी 22 के एज पर।

रवींद्रनाथ ने कलेक्शन ऑफ पोएम लिखी गीतांजलि करके। इनके पोरेम्स को इंग्लिश में ट्रांसलेट किया गाया ओर ये यूरोप ओर अमेरिका मे इतनी फेमस हुई की रवींद्रनाथ टैगोर एक तरह से स्टार बन गए एक तरह से। ये अलग अलग कंट्रीज के दौरे पर जाने लगे, इन्हे लेक्चर देने के लिए इनवाइट किया जाने लगा।

रवींद्रनाथ जी के पोएम अक्सर आजादी, फ्रीडम ओर पैट्रियोटिज्म की थीम्स के अराउंड रिवॉल्वर करती थी। इनकी सैयद सबसे फेमस पोएम है ‘इंटू द हेवन ऑफ फ्रीडम ‘ , ‘माई फादर ‘, लेट माई कंट्री अवेक ‘।

1905 मे जब ब्रिटिश ने पार्टीशन करा दिया था बंगाल का। तब इन्होंने गाना लिखा था ‘आमार सोनार बांग्ला’ जो की आजके दिन बंगला देश का नैशनल एंथम है। तो रविंद्रनाथ टैगोर ने न सिर्फ इंडिया का नैशनल एंथम लिखा है बल्कि बांग्लादेश का नैशनल एंथम भी लिखा ही।

रवींद्रनाथ ने हिंदू और मुशलिम से रिक्वेस्ट भी करी तो के रखशा बंधन के दिन राखी बांदना अपने यूनिटी जताने के लिए। उसी टाईम के दौरान उन्होंने अपना मोस्ट फेमस सोंग भी लिखा था ‘एकला चोलो रे ‘। इंजिस्टिस के खिलाफ लड़ाई मे अगर आप अकेले चल रहे है तो भी आगे चलते रहिए आगे बरते रहिए चाहे ही आप अकेला क्यों न हों।

नोबेल प्राइज विनर

जब इन्होंने हमारा नैशनल एंथम जन गण मन लिखा तब 1911 में कोलकाता के कांग्रेस सेशन में इसे पहली बार गाया गाया था। इसके बाद 1913 में ये पहली नॉन यूरोपियन बन गए नोबेल प्राइज जीतने वाले। इन्होंने नोबेल प्राइज लिटरेचर की फील्ड में जीता।

ब्रिटिश सरकार भी इन्हे काफी रेस्पेक्ट की नजरों से देखती थी। इसी कारण से 1915 में ब्रिटिश सरकार ने इन्हे ‘नाईटहुड’ का टाईटल दिया, जो की काफी रेस्पेक्ट की बात होती है। लेकिन सिर्फ 4 साल बाद 1919 मे जालियांवाला बाग हट्टा कांड हया। जिसकी वाया से इन्होंने एस आ फॉर्म ऑफ प्रोटेस्ट अपना ‘नाइटहुड’ टाईटल वापस कार दिया।

गांधी Vs टैगोर

महात्मा गांधी जी ओर रणिंद्रमाथ टैगोर जीके जो ओपेनियंस थे कुछ चीजों पर वो काफी हदतक मिलते थे। काहिबारी इस हदतक वो अलग थे की ऑलमोस्ट कंट्रास्टिंग ओपिनियंस डेकने को मिलते थे।

महात्मा गांधी जी नेशनलिज्म में बिस्वास रखते थे। उनका मानना था हम जिस देश में पैदा होए है हमीं उसे ऑफकोर्स प्यार करना चाहिए। ओर नेशनलिज्म की भावना लोगो को यूनाइट कराने मे मदार करती है ब्रिटिश के खिलाफ।

लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर का मानना था की नेशनलिज्म की भावना बारी जल्दी ही वैन प्राइड में बदल सकती है। की लोग मानने लग जाय मेरा जो देश है वो बेस्ट देश है ओर बाकी के देशों को हेट कराने लग जाय बिना किसी मतलब के।

तो बेसिकली रवींद्रनाथ टैगोर की आइडियोलॉजी नेशनलिज्म से ऑलरेडी एक स्टेप ऊपर थी ये इंटर नेशनलिज्म में बिस्वास रखते थे। की पूरी दुनिया एक है हमीं दूसरे देशोको दूसरे कल्चर्स को बिना मतलब के हेट नही करना चाहिए। जो की काफी सिमिलर है भगत सिंग के आइडियोलॉजी से। भगत सिंग भी इंटर नेशनलिज्म में बिस्वास रखते थे।

लेकिन इंटरेस्टिंग चीज ये है दोस्तों इस डिफरेंस ऑफ ओपिनियन के बावजूद रविंद्रनाथ टैगोर ओर महात्मा गांधी काफी अच्छे दोस्त थे एक दूसरे के। ओर जरूरत परने पर इन्होंने एक दूसरे की मदत भी करी थी।

1932 में जब गांधी फास्ट पर बैठी थीं पुणे में टैगोर इनकी मदार कराने आए थे। एक दूसरी ऑक्शन पर गांधी ने टैगोर को प्लेस में परफॉम करते हुऐ देखा तो उन्हें उनकी हेल्थ की चिन्ता होने लागी क्योंकि वो काफी ओल्ड एज के हो चुके थे। गांधी ने टैगोर से पूछा की क्या कराने की जरूरत है ये, तो टैगोर ने जवाब दिया की वो असलमे फंड्स इखट्टा कर रहे थे यूनिवर्सिटी के लिए। तो महात्मा गांधी अपने एक अमीर दोस्त से मिलते हे बात करते है और उनकी यूनिवर्सिटी के लिए पैसे डोनेट करवा देते है।

रवींद्रनाथ टैगोर ही थे जिन्होंने 1939 मे सुभाष चंद्र बोस को देश नायक का टाईटल दिया था और इनके बारे मे एक ऐसे लिखा था इनके तारीफ करते हुऐ।

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